पटना हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को बड़ा झटका देते हुए सरकारी नौकरी एवं शैक्षणिक संस्थानों के दाखिले में जाती आधारित आरक्षण को 65% करने वाले कानून को रद्द कर दिया है ।
मुख्य न्यायधीश के विनोद एवं न्यायाधीश हरीश कुमार की खंडपीठ ने गौरव कुमार एवं अन्य द्वारा दायर याचिकाओं पर 4 से 11 मार्च तक लगातार सुनवाई कर निर्णय सुरक्षित रख लिया था , जिसे गुरुवारको सुनाया गया।
क्या बदलाव हुआ था
SC पहले 16 % आरक्षण बाद में 20%
ST पहले एक प्रतिशत आरक्षण बाद में दो प्रतिशत
OBC पहले 12% आरक्षण बाद में 18% आरक्षण
EBC पहले 18% आरक्षण बाद में 25% आरक्षण
बिहार सरकार
ने जातिवार गणना कराई थी, उसके
बाद इसी आधार पर ओबीसी,
ईबीसी, दलित और आदिवासियों का
आरक्षण बढ़ाकर 65 प्रतिशत किया
गया था। याचिका में राज्य सरकार
द्वारा 21 नवंबर 2023 को पारित
कानून को चुनौती दी गई थी, जिसमें
एससी, एसटी, ईबीसी और अन्य
पिछड़े वर्गों को 65 प्रतिशत आरक्षण
दिया गया था। सामान्य श्रेणी के
अभ्यर्थियों को मात्र 35 प्रतिशत पद
ही सरकारी सेवा में दिए जा सकते
थे, जिसमें आर्थिक रूप से कमजोर
(ईडब्ल्यूएस) के लिए 10 प्रतिशत
आरक्षण भी सम्मिलित है। राज्य
सरकार की ओर से महाधिवक्ता
पीके शाही ने अपनी बहस में कोर्ट
को बताया था कि सरकार ने इस
आरक्षण का प्रविधान इन वर्गों के
पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं होने के
कारण किया है।
याचियों की ओर से सुप्री
कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता गोपा
शंकरनारायण ने तर्क दिया था
राज्य आरक्षण की सीमा नहीं ब
सकती है। वरिष्ठ अधिवक्ता मृगांक दमौली एवं समीर कुमार ने सुप्रीम
कोर्ट की संवैधानिक पीठ द्वारा पारित
निर्णयों के संबंध में कहा था कि
न आरक्षण सीमा किसी भी हालत में
50 प्रतिशत से अधिक नहीं बढ़ाई
• जा सकती है। उन्होंने बताया कि
सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा साहनी मामले
में आरक्षण की सीमा पर 50 प्रतिशत
का प्रतिबंध लगाया था। अधिवक्ता
दीनू कुमार ने अपनी बहस में कोर्ट
को बताया था कि सामान्य वर्ग में
ईडब्ल्यूएस के लिए 10 प्रतिशत
आरक्षण रद करना भारतीय संविधान
की धारा-14 और धारा-15(6) (b)
के विरुद्ध है। उन्होंने दलील दी थी
कि जातिवार सर्वेक्षण के बाद जातियों के आनुपातिक आधार पर आरक्षण
का ये निर्णय लिया, न कि सरकारी
नौकरियों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व के
आधार पर। अधिवक्ता अभिनव
ईश्रीवास्तव ने तर्क दिया था कि
5 सरकार द्वारा किए गए जातिवार
सर्वेक्षण से पता चलता है कि कई
पिछड़ी जातियों को सरकारी सेवाओं
में अधिक प्रतिनिधित्व मिला है।
पटना हाई कोर्ट के इस निर्णय के
विरुद्ध राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट का
रुख कर सकती है।
दो अक्टूबर 2023 में जातिवार
गणना की रिपोर्ट जारी की गई थी।
उसी आधार पर आरक्षण की सीमा
बढ़ाई गई। रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में 27.12 प्रतिशत पिछड़ा वर्ग और
36 प्रतिशत जनसंख्या अत्यंत पिछड़ा
वर्ग की है। एक दिसंबर 2023 को
हाई कोर्ट ने याचिका को स्वीकार
कि करते हुए आरक्षण पर रोक लगाने से
बार मना कर दिया था। पटना हाई कोर्ट में
कई नए आरक्षण कानून को चुनौती देने
नों वाली याचिका पर मुख्य न्यायाधीश
। के विनोद चंद्रन की अध्यक्षता वाली
5 बेंच ने राज्य सरकार को 12 जनवरी
तक जवाब देने को कहा था। हाई
कोर्ट ने याची की ओर से रोक लगाने
की मांग को अस्वीकार कर दिया था।
केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी ने
पुनर्विचार याचिका दायर करने का
आग्रह सरकार से किया है।